सोलर एनर्जी ही इस बढ़ती ऊर्जा की खपत को पूरा कर पाने में सक्षम है : विमल कुमार आनंद

प्राचीन काल से ही मनुष्य जल, जंगल, जमीन और सूर्य जैसे प्राकृतिक संसाधनों पर पूरी तरह से निर्भर थे। धीरे-धीरे मनुष्य अपने विकास के क्रम में इन संसाधनों का प्रयोग अलग-अलग तरीके से करते रहे। अगर भारत की बात करे तो 21वीं सदी तक भारत ने कई तरह की आधुनिक क्रांति का नेतृत्व किया अपने प्राकृतिक संसाधनों को ही सर्वोपरि मानकर उसके ऊपर निर्भरता दिखाई। आज जब पूरी दुनिया प्राचीन संसाधनों की ओर लौट रहे है तो एक भारतीय होने के नाते हमारे पूर्वजों के दूरदर्शिता पर इतराना लाज़िमी है। सोलर एनर्जी उसी दूरदर्शिता का परिणाम जिसे पूरी दुनिया आज ग्रहण करने को केवल उत्सुक ही नही बल्कि नवीकरणीय ऊर्जा का इस से बेहतर स्त्रोत खोज पाने में भी असमर्थ है जिसे भारत शुरू से अपना मानवीय जीवन का अति अनिवार्य संसाधन घोषित कर रखी है।

एक सर्वे के अनुसार बढ़ती हुई जनसंख्या और घटती प्राकृतिक संसाधनो ने मनुष्य के आधुनिकरण को कड़ी चुनौती दी है। एनर्जी मनुष्य के जीवन का अब अभिन्न हिस्सा बन चुका है लेकिन जब बात उसके उत्पादन की हो तो मनुष्य बेबस और लाचार नजर आने लगता है। सरकार द्वारा बनाये जा रहे ऊर्जा उत्पादन केंद्र न केवल महंगे है बल्कि पूरी आबादी को ऊर्जा उपलब्ध करवा पाने में असमर्थ है अतः लोगो को अपने घरों रोशन करने के लिए खुद ही ऊर्जा का निर्माण करना होगा। सोलर एनर्जी ही इस बढ़ती ऊर्जा की खपत को पूरा कर पाने में सक्षम है।

लेखक :- विमल कुमार आनंद

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